सीकर में किसान आंदोलन हो और उसमें केवल एक ही राजनैतिक पार्टी का झंडा लहराया जाए तो कोई मंदबुद्धि भी समझ जाएगा कि ये कोई किसान आंदोलन नहीं होकर केवल राजनैतिक रोटियां सेकने वाला आंदोलन है और ग्राउंड लेवल पर हर किसी को इस बात का पता ही होता है मगर मीडिया में पैसे देकर, या डरा धमकाकर उसकी फर्जी खबर छपवा भी जाती है जिससे बाकी लोगों को वो किसान आंदोलन ही लगता है मगर सीकर टाइम्स को कोई डरा नहीं पाया और सीकर में मौजूद हर अव्यवस्था फैलाने वाले के घर में घुसकर भंडाफोड़ किया है जो दोबारा से होना तय है 


किसान आंदोलन हमेशा आढ़तियों के अड्डे पर ही प्रायोजित होता है 

असली किसान से किसी मुनाफाखोर को कोई सरोकार नहीं है उसको केवल किसानो को गरीब रखकर खुद मोटा माल बनाना होता है, जहाँ किसान को अपनी लागत मूल्य भी नहीं मिल पाती वहीँ सौ रूपये में खरीदी फसल को मोटे मुनाफे में बेचने वाले ही किसान आंदोलन प्रायोजित कर, पंडाल - चाय-नाश्ता करवाकर गरीब किसानो का मुँह बंद रखते हैं 

कितनी सौ जीपें हर रोज डीजल जला रही है उसका पैसा कितना है 

आंदोलन से हफ्ते पहले हर गांव में एक जीप को पैसे दिए जाते हैं जिसका खर्चा कम से कम दो हजार प्रतिदिन आता है, तो कितनी जीपें लगी और कितना खर्चा हुआ उसकी डिटेल आएगी सामने 

ट्रेक्टर फ्री में नहीं आता उसका खरचा लगता है 

कोई किसान जो गरीब है और जैसा कहा जाता है कि प्रताड़ित है उसके पास नया ट्रेक्टर खरीदने और उसमें डीजल डलवाने के पैसे कहाँ से आते हैं, असल बात ये है कि हर ट्रेक्टर को दूरी के हिसाब से पैसे दिए जाते हैं जो सीकर में पंद्रह सौ रूपये से ज्यादा हो सकते हैं | ऐसे में सौ ट्रेक्टर भी आते हैं तो कम से कम डेड लाख की पेमेंट खर्च की जाती है 

पंडाल की परमिशन आढ़तियों की मर्जी के बिना कैसे मिल सकती है 

जबतक आढ़तियों का गुट शामिल न हो तब तक कृषि मंडी में सभा हो ही नहीं सकती और पंडाल के अलावा चाय नाश्ता, ऑडियो, माइक का खरचा भी यही पूंजीपति खर्च करते हैं जिनके मंच पर पूंजीपतियों को कोसा जाता है जिससे लगता रहे की कुछ चल रहा है| पंडाल का वगैरह का खर्चा तो अलग है ही जो लाखों में आता है मगर चाय नाश्ते और खाने का खरचा उससे कहीं ज्यादा आता है 

कामरेडों के किसान नाम की महापंचायत कौनसा छात्रसंघ आएगा 

केवल SFI ही आएगा ये सबको पता है, NSUI ABVP का कोई झंडा नहीं दिखेगा और न ही कोई कार्यकर्ता | जो SFI में आज आंदोलन कर रहे हैं वो कल अपने गांव में जाकर वार्डपंच की टिकट मांगेंगे और फार्म खारिज करवाने वाले खेल में शामिल होंगे | सीकर में सबसे ज्यादा फार्म कामरेडों के ही ख़ारिज होते हैं क्यूंकि छोटे लेवल की पॉलिटिक्स में सबको पता होता है कि कौन अपना फार्म ख़ारिज करवाएगा तो किसको फायदा होगा तो जिसको फायदा हो सकता है उससे डील मिलते ही फार्म ख़ारिज करवाने वाली त्रुटि कर दी जाती है फिर ख़ारिज होने के बाद सरकारी साजिश का नाम और दे दिया जाता है 

बाकि मीडिया इसको नहीं जानती क्या 

हर छोटी डिटेल का खुलासा केवल सीकर टाइम्स पर होगा क्यूंकि हम असली किसानो के घर से हैं और हम किसी से न चंदा लेते हैं न विज्ञापन | सीकर के पत्रकारों को हमसे हमेशा खतरा रहता है क्यूंकि जहाँ से वो पैसा लेते हैं हमेशा उसकी पोल सीकर टाइम्स ही खोलता है इसीलिए सभी बिकाऊ टोली ने सीकर टाइम्स के खिलाफ गुट बनाकर हस्ताक्षर कर हमारे बहिष्कार का कैंपेन भी चलाया था जो उल्टा बैक फायर कर गया | आज के समय में सीकर की मीडिया के नाम पर सभी केवल सीकर टाइम्स को ही जानते हैं और दो साल से कम समय में बिकाऊ पत्रकारों में से आधों ने जिला बदल डाला या हमारे यहाँ आकर अभीयान चलाने की माफ़ी मांग ली 

लाल किसान नेताओं ने सबसे ज्यादा शोषण जाटों का ही किया है 

सीकर में जाट बोर्डिंग की जमीन राव राजा कल्याण सिंह ने दी थी जिससे जाटों के बच्चे शहर में आकर पढ़ लिख काबिल बन सकें मगर वहां वामपंथियों ने अपनी खेती शुरू कर दी और फसल के रूप में जाटों के काबिल बच्चों के दिमाग में वामपंथ का जहर और जबरन आंदोलन में हिस्सा लेने को मजबूर कर कई हजार केस लगवा दिए जिसकी वजह से अब बच्चे केवल कोर्ट कचहरी में लगे रहते हैं और हर थोड़े समय में पेशी पर आते हैं इसका फायदा इनको ये होता है कि पुराने लोगों को भी ये अपने अड्डे पर बैठाकर उनके साथ होने का दिखावा कर उनकी मानसिकता को परमानेंट ख़राब कर रहे हैं 

कांग्रेस भाजपा भी तो आंदोलन करवाती हैं तो अंतर क्या है 

कांग्रेस भाजपा जैसी पार्टियों को सत्ता में आना होता है इसलिए उनकी जवाबदेही होती है और उनकी वजह से किसी का भविष्य ख़राब हो उसका खयाल रखा जाता है मगर वामपंथी कभी सत्ता में आना नहीं और उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है इसलिए ये बच्चों के भविष्य के लिए खतरनाक हो गए हैं, सीकर में कितने ठेले वाले हैं जिनसे गुंडई में सब्जी उठाकर ले जाने वाले अपने आपको कामरेड कहते हैं, कितने ऐसे ढाबे हैं जहाँ कामरेड पैसा नहीं देते और खाना नहीं देने पर मारपीट कर देते हैं, कितने ऐसे गांव है जहाँ सोसाइटी बनाकर पैसे लेते हैं और मना करने पर खेतों को नुकसान पहुंचते हैं, कितने ऐसे ट्रांसफार्मर हैं जीने तार चोरी करने वाले कामरेड पाए गए इसकी गिनती हर गांव हर मोहल्ले को पता है  

कामरेड हमलों से हम कमजोर नहीं और ताकतवर हुए हैं 

मेरे ऊपर दो बड़े और कई छोटे हमले हुए हैं, सीकर में सबसे ज्यादा रिस्की प्रोफाइल मेरा है जिसका कारण भी यही है कि किसानो के परिवार से आने की वजह से किसानो के बच्चों को गुमराह करते वामपंथी जिन्होंने सबसे ज्यादा जाटों के बच्चों का भविष्य ख़राब किया है उनकी साजिशें सामने ला रहा हु और हजारों बच्चों का भविष्य ख़राब होने से बचा चूका हूँ | 







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