जागरूकता का अलग से कोई कोर्स नहीं होता जिसमें एडमिशन लेकर जागरूक बना जाए, छोटी छोटी बातों को नागरिक ध्यान में रखें तो देश की सम्प्रभुता पर आंच नहीं आ सकती| कई वर्षों का संघर्ष 2015 में अपने मुकाम पर पहुंचा उसमें क्या क्या पड़ाव आये
टीवी पर निरंतर आते गलत नक़्शे परेशान करते थे
2015 से पहले हर दूसरे चैनल पर भारत का गलत नक्शा आता तो मन परेशान होता था और इसके लिए कई डिपार्टमेंट में पत्राचार किया, टीवी चैनलों को भी लिखा मगर कोई फरक नहीं पड़ा, उस समय की भारत की परेशानियां अलग थी सीधे दस साल तक जोड़ तोड़ वाली सरकारें थी जो 2014 में ही बदली थी और नयी सरकार से लोगों की आशाएं इतनी थी कि वो हर फैसले में टांग नहीं अड़ाना चाहती थी, फिर भी नक़्शे वाले प्रयास जारी रखे | इस बात का पता था कि RSS एकमात्र ऐसा संगठन था को कश्मीर के नक़्शे को लेकर मदद कर सकता था क्यूंकि राष्ट्रवाद से ही उनका जन्म हुआ था मगर यहाँ भी परेशानी थी कि राजनैतिक मसलों में RSS सीधे तौर पर हस्तक्षेप नहीं करता था तो इस नक़्शे वाले मसले को कैसे ठीक किया जाए
कैसे मिली सफलता
कुछ बदलाव लाने के लिए चाहे वो पॉजिटिव ही क्यों न हो थोड़ा बहुत अवसरवादी होना ही पड़ता है, आरएसएस एकमात्र ऐसा संगठन था जो इस मसले को सीरियस ले सकता था और पूरे प्रूफ का पुलिंदा कई सालों में बन चुका था | भारत केवल एक मेरा देश नहीं था मगर भारत के लिए मुझे जो दर्द था उसको बाकियों को भी फील करवाना था जिससे उन्हें पता चल सके कि पीठ पीछे चल क्या रहा है | आरएसएस की लोकल शाखा पहुंचकर बात की तो मेरी बात को पूरे सीरियस तौर पर लिया गया, सबूत इतने थे कि घंटे भर में आरएसएस के एक बड़े स्वयंसेवी से मेरी बात चल रही थी और उन्होंने बताया कि कंप्लेंट करो और मुझे नंबर दो |
खुद श्रेय न लेने वाले स्वयंसेवी
करने को आरएसएस के बड़े स्वयंसेवी, ये काम खुद भी अपने लेवल पर कर सकते थे और इसका श्रेय लेते तो उनकी मान प्रतिष्ठा में अभूतपूर्व इजाफा होता, साथ ही मैं पहले से तैयार था कि श्रेय कोई भी ले, बस भारत का नक्शा ठीक होना चाहिए | यहाँ पर पहली बार प्रैक्टिकल उदहारण मिला कि आरएसएस के मूल सिद्धांत ही राजनीती के मूल सिद्धांतों से अलग थे | वो किसी कार्य का व्यक्तिगत श्रेय नहीं लेते थे और दूसरों को भी हिदायत देते हैं कि श्रेय वाले होड़ में न रहो | मैंने कंप्लेंट डाली, और डिटेल उनको दे दी उनको जिनका नाम लिखने से उन्होंने ही मन किया है क्यूंकि श्रेय वाले सिद्धांत का पहले बता चुका हूँ
फोन पर फोन आने लगे, जिस बात के लिए कोई जवाब नहीं देता था
पहले तो विश्वास नहीं हुआ कि जिस बात पर कोई ध्यान देना अपनी हैसियत से नीचे समझता था उसी कंप्लेंट के लिए कई अफसरों के फोन आ चुके थे, आईएएस काडर के लोग मुझसे पूछ रहे थे कि क्या करना चाहिए क्यूंकि सालों से उनके काम करने के तरीके में एक अलग प्रकार का जंग लग चूका था तो मैंने अपनी तरफ से माफ़ी की बात कह दी | दस साल से यूनिवर्सिटी में मेडिकल प्रोफेस्सरी करने के कारण पता था कि जुर्माने वगैरह की जगह अगर किसी विदेशी चैनल से माफ़ी मंगवा दी जाए तो बात दूर तक जायेगी और नेशनल जियोग्राफिक जो बड़ा चैनल था और विश्व भर में उसका ब्रांड था उसका ही नाम लिया गया | कहानी में कई ट्विस्ट हैं, कई बड़े अफसरों की फाइलें भी निपटी और इतना आसान नहीं रहा मगर ज्यादा विस्तार से लिखना भी अपने आप में श्रेय लेने के बराबर है इसलिए इसे इतना मान लें कि आपका और हमारा पेंडिंग वर्क हो गया, और हमें क्या लेना है
आज क्यों बतानी पड़ी बात
इतने साल बाद आज आजतक चैनल के वीडियो पर भारत का गलत नक्शा देखा तो बताना पड़ा कि विदेशियों से जिस बात की माफ़ी मंगवा दी है तो किसी लापरवाह देसी को भी बक्शा नहीं जाएगा | समय के साथ देश के लिए पॉजिटिव सोचने का इनाम इतना मिला है कि आज साधारण जनता से सोशल मीडिया के माध्यम से सीधा संवाद है, हर डिपार्मेंट में कैसे घुसकर कहाँ शिकायत करनी है वो बहुत क्लियर है| तो गलत नक्शा दिखाने वाले बस इतना समझ लें कि ईंट से ईंट बजा दी जायेगी ऐसी गलती दोबारा की तो | मतलब ये चेतावनी है हर चैनल के लिए क्यूंकि मामला हर भारतीय से जुड़ा है , सो बात बता दी, अब आप जानो या तैयार रहो !
धन्यवाद, जय हिन्द
Yashwant INDIA
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